उत्तराखंड की राजधानी देहरादून इन दिनों युवा आक्रोश का केंद्र बनी हुई है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) के पेपर लीक कांड ने बेरोजगार युवाओं के गुस्से को सड़क पर ला खड़ा किया है। परेड मैदान में चल रहे धरना-प्रदर्शन के दौरान बुधवार को एक ऐसा नजारा देखने को मिला, जिसने खुफिया विभाग तक को अलर्ट कर दिया। यहां अचानक 2016 के जेएनयू विवाद की याद दिलाने वाले “आजादी” के नारे गूंज उठे और इसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगा।
क्या हुआ परेड मैदान में?
जानकारी के अनुसार, पेपर लीक कांड के विरोध में चल रहे धरने में टिहरी की एक महिला जनप्रतिनिधि युवाओं के समर्थन में पहुंचीं। इस दौरान उन्होंने नारेबाजी की, जिसे कुछ लोगों ने “जेएनयू स्टाइल आजादी के नारे” बताया। हालांकि बाद में यह दावा भी सामने आया कि नारों में भड़काऊ या कानून विरोधी कोई बात नहीं थी। फिर भी, खुफिया विभाग ने इस घटना को गंभीरता से लिया है और पूरे मामले पर निगरानी रख रहा है।
क्यों भड़के युवा?
बेरोजगार संगठन लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि पेपर लीक की जांच सिर्फ एसआईटी (विशेष जांच टीम) तक सीमित न रहे। उनका आरोप है कि एसआईटी सरकार के दबाव में काम कर सकती है, इसलिए निष्पक्ष जांच के लिए यह मामला सीबीआई को सौंपा जाए। उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल ने साफ कहा कि जब तक सरकार पहले परीक्षा को निरस्त नहीं करेगी, तब तक युवाओं का भरोसा बहाल नहीं होगा।
राजनीतिक बयानबाजी तेज
पेपर लीक कांड ने राजनीतिक तकरार को भी हवा दे दी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा। उन्होंने सोशल मीडिया मंच “एक्स” पर लिखा कि जब युवा सरकारी नौकरी पाने के लिए सालों मेहनत करते हैं, तो उनका हक ऐसे “नकल माफियाओं” के कारण छिन जाता है। प्रियंका ने सवाल उठाया कि आखिर क्यों उत्तराखंड, यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में बार-बार पेपर लीक जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं?
सामाजिक प्रभाव
देहरादून और आसपास के जिलों में रहने वाले बेरोजगार युवाओं की नाराजगी समझना मुश्किल नहीं है। यहां हर साल हजारों उम्मीदवार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, जिनमें से कई अपने परिवारों से दूर रहकर मेहनत करते हैं। ऐसे में जब पर्चे लीक हो जाते हैं तो उनका सालों का परिश्रम बर्बाद हो जाता है। मैंने खुद कई स्थानीय छात्रों से बात की है, उनका कहना है कि यह सिर्फ “परीक्षा” का मामला नहीं बल्कि “भविष्य” का सवाल है।
खुफिया विभाग की भूमिका
हालांकि नारों में कोई सीधा देशविरोधी संदेश सामने नहीं आया, लेकिन खुफिया एजेंसियों का सतर्क रहना जरूरी है। पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि संवेदनशील माहौल में छोटे-से-छोटे नारे या बयान भी बड़े विवाद का रूप ले सकते हैं। इसलिए सरकार और प्रशासन के लिए यह जरूरी है कि युवाओं की genuine (वास्तविक) समस्याओं को समय रहते सुलझाया जाए।
निष्कर्ष
देहरादून में गूंजे “आजादी” के नारे महज नाराजगी का प्रतीक थे या फिर विरोध को और जोरदार बनाने का तरीका – यह तो जांच के बाद स्पष्ट होगा। लेकिन इतना तय है कि पेपर लीक ने युवाओं के मन में गहरी चोट पहुंचाई है। अब यह सिर्फ रोजगार का नहीं, बल्कि सिस्टम पर भरोसे का सवाल बन गया है। यदि सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाले दिनों में यह गुस्सा और बड़ा रूप ले सकता है।