उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आयोजित ‘हिमालय बचाओ अभियान-2025’ कार्यक्रम ने एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि विकास और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना कितना अहम है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस अवसर पर कहा कि हिमालय केवल बर्फीली चोटियों का नाम नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा और संस्कृति का प्रतीक है।
कार्यक्रम का उद्देश्य और महत्व
यह अभियान साल 2012 में हिंदुस्तान समाचार पत्र द्वारा शुरू किया गया था। उस समय इसका मकसद था आम लोगों को हिमालय संरक्षण के प्रति जागरूक करना। अब यह पहल जन-जन का अभियान बन चुकी है।
मुख्यमंत्री धामी ने इस दौरान उन व्यक्तियों और संगठनों को सम्मानित किया जिन्होंने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
सीएम धामी के विचार
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि –
- हिमालय से निकलने वाली नदियां करोड़ों लोगों के लिए जीवनरेखा हैं।
- यहां की दुर्लभ वनस्पतियां और जीव-जंतु पर्यावरण की अनमोल धरोहर हैं।
- राज्य सरकार वन संरक्षण, जल संरक्षण और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा दे रही है।
धामी का मानना है कि यदि हमें हिमालय को बचाना है, तो विकास योजनाओं को बनाते समय पर्यावरणीय संतुलन को प्राथमिकता देनी होगी।
जलवायु परिवर्तन और खतरे
आज जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के सामने एक बड़ा संकट है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य इसकी मार सबसे ज्यादा झेल रहे हैं।
- बार-बार हो रहे भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं इस खतरे की गवाही देती हैं।
- यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले सालों में यह खतरा और बढ़ सकता है।
सरकार के प्रयास
- पौधारोपण और जल संरक्षण अभियान लगातार चलाए जा रहे हैं।
- पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम स्कूलों और कॉलेजों तक पहुंचाए जा रहे हैं।
- सस्टेनेबल टूरिज्म को बढ़ावा देने पर जोर है ताकि पर्यटन से पर्यावरण पर बोझ न पड़े।
प्लास्टिक वेस्ट प्रबंधन के लिए डिजिटल डिपॉजिट रिफंड सिस्टम शुरू किया गया है, जिससे 72 टन कार्बन उत्सर्जन घटाने में सफलता मिली है।
स्थानीय ज्ञान की अहमियत
मुख्यमंत्री ने एक महत्वपूर्ण बात कही कि हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की पारंपरिक जीवनशैली प्रकृति के साथ तालमेल बिठाना सिखाती है।
- उनके अनुभवों और ज्ञान को हमारी पर्यावरण नीति में शामिल किया जाना चाहिए।
- जब स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ेगी, तभी संरक्षण की दिशा में ठोस नतीजे मिलेंगे।
निष्कर्ष
‘हिमालय बचाओ अभियान’ हमें याद दिलाता है कि विकास तभी सार्थक है जब वह प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर किया जाए।
मुख्यमंत्री धामी की बात बिल्कुल सही है कि जब हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझेगा, तभी हम इस अनमोल धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख पाएंगे।