उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला इन दिनों एक गंभीर चिंता के बीच है। यहां स्वतंत्र पत्रकार राजीव प्रताप पिछले 9 दिनों से रहस्यमयी ढंग से लापता हैं। पत्रकारिता जगत और स्थानीय समाज दोनों ही इस घटना से हतप्रभ हैं।
घटना कैसे हुई?
जानकारी के अनुसार, 18 सितंबर की रात करीब 11 बजे राजीव अपने घर लौट रहे थे। उस समय वे अपने दोस्त की कार चला रहे थे और रास्ते में उनके साथ मौजूद साथी बीच रास्ते में उतर गया। अगले दिन सुबह उनकी कार भागीरथी नदी के किनारे खड़ी मिली, लेकिन राजीव का कोई सुराग नहीं लगा।
परिवार ने तुरंत पुलिस को सूचना दी और गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। फिलहाल, पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें नदी किनारे और आसपास के इलाकों में तलाश कर रही हैं, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है।
भ्रष्टाचार उजागर करने की कीमत?
राजीव प्रताप उत्तराखंड और दिल्ली को जोड़ने वाले “दिल्ली-उत्तराखंड लाइव” नामक प्लेटफॉर्म का संचालन करते थे। वे लंबे समय से स्थानीय मुद्दों और खासकर उत्तरकाशी जिला अस्पताल की बदहाली पर लगातार रिपोर्टिंग कर रहे थे।
कुछ ही दिन पहले उन्होंने अस्पताल की हालत पर एक वीडियो जारी किया था, जिसमें दीवारों की दरारें, दवाइयों की भारी कमी और मरीजों की परेशानियां साफ दिखाई दे रही थीं। यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ।
राजीव की पत्नी का कहना है कि वीडियो के बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं। परिवार का मानना है कि भ्रष्टाचार उजागर करने की वजह से ही उनके खिलाफ कोई साजिश रची गई हो सकती है।
पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी
फिलहाल पुलिस ने गुमशुदगी का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। परंतु परिवार और स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मामले को केवल लापता होने की तरह नहीं, बल्कि संभावित साजिश और अपराध की तरह देखा जाना चाहिए।
ऐसे मामलों में सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि जांच में देरी से साक्ष्य नष्ट हो जाते हैं। इसलिए पुलिस और प्रशासन को तेज़ी से और पारदर्शी तरीके से काम करना होगा।
पत्रकारों पर बढ़ता खतरा
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की गुमशुदगी नहीं, बल्कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। जब कोई पत्रकार समाज की समस्याएं उजागर करता है और बदले में उसे धमकियां मिलती हैं, तो यह लोकतंत्र की जड़ों को हिलाने जैसा है।
दुर्भाग्य से, उत्तराखंड जैसे शांत माने जाने वाले राज्य में भी पत्रकारों पर खतरे बढ़ रहे हैं। ऐसे में सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है कि पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
निष्कर्ष
राजीव प्रताप पिछले 9 दिनों से लापता हैं। उनकी कार नदी किनारे मिली, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं है। परिवार का आरोप है कि भ्रष्टाचार उजागर करने की वजह से उन्हें धमकियां मिल रही थीं।
यह मामला सिर्फ गुमशुदगी नहीं, बल्कि पत्रकारिता की आज़ादी और समाज की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। अब वक्त है कि प्रशासन तेजी से कार्रवाई करे और इस रहस्यमयी गुमशुदगी की असली परतें खोले।
अगर आज इस घटना को हल्के में लिया गया, तो कल हर उस आवाज़ को खतरा होगा जो सच्चाई बोलने की हिम्मत रखती है।