Haldwani: सिस्टम से सवाल पशुओं के लिए राहत का ठिकाना या फिर भूख का कैदखाना, बेजुबान अपना दर्द आखिर किससे कहें

Rishab Gusain
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Rishab Gusain is a Digital Marketing Executive and skilled content writer from Dehradun, Uttarakhand. With experience working for several national and international brands, he has helped...
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शहर की सड़कों पर बेघर और बेसहारा भटकते मवेशियों को सुरक्षित रखने और उन्हें हादसों से बचाने के लिए जो गोशालाएं बनाई गई थीं, आज वही जगह कई सवाल खड़े कर रही है। हालात यह हैं कि यहां रह रहे सैकड़ों पशु पेट भरने को तरस रहे हैं। सरकारी अनुदान, चारे का इंतजाम और डॉक्टरों की टीम होने के बावजूद राजपुरा गोशाला में 324 मवेशियों की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है।

भूख से कराहते मवेशी

राजपुरा गोशाला में गाय, बैल, सांड़, भैंस और बछड़े समेत 324 पशु हैं। जिन जानवरों को कभी सड़कों से हटाकर सुरक्षित जीवन देने का सपना दिखाया गया था, वे अब गोशाला की चारदीवारी के भीतर भी भूख और लाचारी से जूझ रहे हैं।

गोशाला संचालिका निकिता सुयाल के अनुसार प्रतिदिन लगभग 40 क्विंटल हरा चारा और 30 क्विंटल सूखा चारा दिया जा रहा है। लेकिन यह मात्रा जरूरत से बहुत कम है।

विशेषज्ञ मानकों के अनुसार, एक स्वस्थ पशु को प्रतिदिन लगभग 25 किलो हरा और 10 किलो सूखा चारा चाहिए। जबकि यहां औसतन हर पशु को केवल आधा ही मिल पा रहा है। इसी वजह से कई गायों और बैलों की पसलियां तक साफ दिखने लगी हैं।

आंकड़े खुद बयान कर रहे सच्चाई

  • जरूरत: 324 पशुओं के लिए रोजाना 8100 किलो हरा और 3240 किलो सूखा चारा चाहिए।
  • मिल रहा: 4000 किलो हरा और 3000 किलो सूखा चारा।
  • कमी: हर पशु को रोजाना औसतन करीब 12 से 13 किलो हरा और लगभग 1 किलो सूखा चारा कम मिल रहा है।
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यानी अनुदान और व्यवस्था के बावजूद गोशाला में भूख हावी है।

अनुदान और खर्च का गणित

सरकार हर पशु पर 80 रुपये प्रतिदिन देती है।

  • कुल अनुदान: 25,920 रुपये प्रतिदिन (करीब 7.77 लाख मासिक)।
  • सिर्फ चारे का खर्च: 24,280 रुपये प्रतिदिन।
  • कर्मचारियों का वेतन: 12 कर्मचारी, प्रत्येक को 12,000 रुपये यानी लगभग 1.44 लाख मासिक।
  • कुल मासिक खर्च: करीब 8.72 लाख रुपये, यानी अनुदान से लगभग 1 लाख रुपये ज्यादा।

यह साफ करता है कि या तो अनुदान अपर्याप्त है या खर्चों की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल हैं।

मौतों का सिलसिला

अब तक गोशाला में 50 पशुओं की मौत हो चुकी है। अधिकारियों का कहना है कि इनमें से ज्यादातर जानवर पहले से ही हादसों में घायल या बीमार थे। यह तर्क कुछ हद तक सही हो सकता है, लेकिन सच यह भी है कि कुपोषण और अव्यवस्था ने उनकी हालत और बिगाड़ दी।

जिम्मेदारों के बयान

  • धीरेश जोशी, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी: “गोशाला में रोजाना डॉक्टरों की टीम जाती है, घायल जानवरों का इलाज होता है और स्वस्थ्य पशुओं को अन्य गोशालाओं में शिफ्ट भी किया जाता है।”
  • गणेश भट्ट, प्रभारी नगर आयुक्त: “गोशाला का संचालन निजी संस्था कर रही है। हमारी टीम समय-समय पर जांच करती है। अगर चारे की कमी है तो इसकी जांच कराई जाएगी।”
  • निकिता सुयाल, गोशाला संचालिका: “पशुओं की सेवा की जाती है। उन्हें समय पर खाना-पानी दिया जाता है। जिन पशुओं की मौत हुई, उनमें से अधिकतर पहले से ही घायल थे।”

संवेदनशीलता पर सवाल

कागजों में सब कुछ व्यवस्थित नजर आता है—अनुदान, चारा, कर्मचारी और डॉक्टरों की टीम। लेकिन हकीकत यह है कि गोशाला में रह रहे मवेशी भूख और कुपोषण से कराह रहे हैं। गोशाला, जो सेवा और दया का प्रतीक होनी चाहिए थी, आज एक दर्दनाक कैदखाना बन गई है।

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निष्कर्ष

हल्द्वानी की गोशालाएं एक बड़ा सबक देती हैं कि सिर्फ दीवारें और अनुदान जानवरों को राहत नहीं दे सकते। जब तक व्यवस्था में संवेदनशीलता और ईमानदारी नहीं आएगी, तब तक गोशालाएं बेजुबानों के लिए “आश्रय” नहीं, बल्कि “कैदखाना” बनी रहेंगी।

अब सवाल यह है कि आखिर इन बेजुबानों की खामोश पुकार कौन सुनेगा?

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Rishab Gusain is a Digital Marketing Executive and skilled content writer from Dehradun, Uttarakhand. With experience working for several national and international brands, he has helped businesses achieve remarkable organic growth through his strategic digital marketing approach. Deeply connected to his roots, Rishab is passionate about showcasing the rich culture, travel destinations, and traditions of Uttarakhand. His engaging content has attracted a growing readership, hitting over 10,000 visits in just two months.
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