मध्य पूर्व की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा करने की अनुमति उन्हें नहीं दी जाएगी। यह बयान ऐसे समय आया है जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की मांग तेज हो गई है और कई मुस्लिम देश इजरायल की नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठा रहे हैं।
ट्रंप का बयान और वैश्विक दबाव
ओवल ऑफिस से प्रेस को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, “मैं इजरायल को वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा करने की इजाजत नहीं दूंगा, ऐसा हरगिज़ नहीं होगा।” उनका यह बयान सीधे-सीधे नेतन्याहू की उन योजनाओं पर रोक की तरह है, जिनमें वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों को इजरायली भू-भाग में मिलाने की बात कही जा रही थी।
ट्रंप का यह रुख कई मायनों में अहम है:
- सबसे पहले, यह नेतन्याहू के लिए एक राजनीतिक झटका है क्योंकि वह लंबे समय से वेस्ट बैंक पर नियंत्रण मजबूत करने की बात कर रहे थे।
- दूसरा, यह बयान ऐसे वक्त आया जब मुस्लिम देशों के साथ-साथ ब्रिटेन और कनाडा जैसे अमेरिका के सहयोगी भी फिलिस्तीन को राष्ट्र का दर्जा देने के समर्थन में खड़े हो गए हैं।
- तीसरा, अरब देशों का दबाव भी लगातार बढ़ रहा है। संयुक्त अरब अमीरात ने तो यहां तक कहा है कि इजरायल का कोई भी कब्ज़े से जुड़ा कदम ‘लक्ष्मण रेखा’ पार करने जैसा होगा।
सोमवार की अहम मुलाकात
खास बात यह है कि यह बयान ट्रंप और नेतन्याहू की होने वाली मुलाकात से कुछ ही दिन पहले दिया गया। सोमवार को होने वाली इस बैठक पर अब सबकी निगाहें हैं। गाजा और वेस्ट बैंक में लगातार बढ़ते तनाव के बीच नेतन्याहू पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ चुका है। कई देश यह साफ कर चुके हैं कि अब फिलिस्तीन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: क्यों है वेस्ट बैंक अहम?
वेस्ट बैंक का विवाद दशकों पुराना है।
- 1967 के युद्ध के बाद इजरायल ने वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गाजा पर कब्ज़ा कर लिया था।
- फिलिस्तीनियों की मांग है कि इन इलाकों को मिलाकर उनका स्वतंत्र राष्ट्र बनाया जाए।
- वहीं, नेतन्याहू की सरकार और उनके अतिराष्ट्रवादी सहयोगी चाहते हैं कि वेस्ट बैंक को स्थायी रूप से इजरायल का हिस्सा बना दिया जाए।
यह मुद्दा सिर्फ इजरायल-फिलिस्तीन के बीच की राजनीति तक सीमित नहीं है बल्कि इसका असर पूरे मध्य पूर्व की स्थिरता और वैश्विक शांति पर पड़ता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रुख
हाल के वर्षों में यूरोप के कई देशों ने फिलिस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की दिशा में कदम बढ़ाया है। ब्रिटेन और जर्मनी ने भी इजरायल को चेताया है कि वेस्ट बैंक पर कब्ज़े से जुड़े प्रस्ताव वैश्विक अस्थिरता को और गहरा करेंगे।
मेरे विचार से, यह बदलाव अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नए मोड़ का संकेत है। पहले जहां कई देश इजरायल का समर्थन करने में हिचकिचाते नहीं थे, अब धीरे-धीरे संतुलन बदलता दिख रहा है।
व्यक्तिगत दृष्टिकोण: क्यों जरूरी है संवाद?
मुझे लगता है कि वेस्ट बैंक और गाजा का मुद्दा केवल भू-भाग का विवाद नहीं है। यह मानवीय संवेदनाओं से भी जुड़ा है। दशकों से वहां रहने वाले लोग असुरक्षा, युद्ध और पलायन की स्थिति झेल रहे हैं। ऐसे में किसी भी प्रकार का कब्ज़ा न केवल उनके अधिकारों का हनन होगा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को हिंसा और अविश्वास की विरासत देगा।
अगर अमेरिका जैसे बड़े देश स्पष्ट संदेश देते हैं, तो यह न सिर्फ नेतन्याहू बल्कि दुनिया भर को यह एहसास कराता है कि अब सिर्फ ताकत के दम पर भू-भाग हड़पना संभव नहीं है। समाधान केवल संवाद और कूटनीति से ही निकलेगा।
निष्कर्ष
वेस्ट बैंक विवाद एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन गया है। डोनाल्ड ट्रंप का नेतन्याहू को दिया गया सख्त संदेश दर्शाता है कि दुनिया अब इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठ सकती। अरब देशों का दबाव, यूरोपीय देशों का रुख और फिलिस्तीन को मान्यता देने की बढ़ती आवाजें आने वाले समय में बड़ा बदलाव ला सकती हैं।
यह स्थिति हमें याद दिलाती है कि चाहे कोई भी शक्ति कितनी बड़ी क्यों न हो, अंततः शांति और सहअस्तित्व ही स्थायी समाधान हैं।