उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर विवादों में घिरती नजर आ रही है। राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता पर आरोप लगा है कि उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अपने बेटे को जूनियर इंजीनियर (JE) की नौकरी दिलाई — वह भी बिना किसी परीक्षा या साक्षात्कार के। अब यह मामला सुर्खियों में आने के बाद उत्तराखंड बेरोजगार संघ ने इस पर बड़ा खुलासा करने की घोषणा की है। संघ का दावा है कि यह मामला सिर्फ “भाई-भतीजावाद” का नहीं, बल्कि प्रणालीगत भ्रष्टाचार का उदाहरण है।
बेरोजगार संघ का आरोप: नियमों को दरकिनार कर दी गई संविदा नियुक्ति
उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल ने कहा कि संबंधित भाजपा नेता ने सरकारी विभाग में संविदा के तहत नियुक्ति प्रक्रिया में अपने बेटे को शामिल करवाया और बिना किसी औपचारिक प्रक्रिया के उसे 35,000 रुपये वेतन वाली JE की नौकरी दिला दी।
राम कंडवाल का आरोप है कि संविदा पर भर्ती के लिए राज्य सरकार द्वारा जो नियम तय किए गए हैं — जैसे पारदर्शी चयन प्रक्रिया, विज्ञापन जारी होना और मेरिट लिस्ट बनना — उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज किया गया।
उन्होंने कहा, “यह साफ तौर पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का मामला है। जहां आम युवाओं को वर्षों से नौकरी की आस है, वहीं नेताओं के परिवार सीधे नियुक्तियां पा रहे हैं।”
आज हो सकता है बड़ा खुलासा
बेरोजगार संघ ने घोषणा की है कि वह बुधवार को इस पूरे मामले का विस्तृत खुलासा करेगा। संघ के मुताबिक, अगर सरकार ने इस पर कोई जांच नहीं की, तो वे राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे।
राम कंडवाल ने यह भी आरोप लगाया कि यह पहला मामला नहीं है — “पिछले कुछ सालों में राजस्थान जैसे बाहरी राज्यों से लोगों को उत्तराखंड में संविदा पर नियुक्त किया गया और बाद में उन्हें स्थायी कर दिया गया। इससे स्थानीय बेरोजगार युवाओं के साथ बड़ा अन्याय हुआ है।”
उत्तराखंड में बेरोजगारी का संकट और बढ़ता असंतोष
उत्तराखंड में बेरोजगारी पिछले कुछ वर्षों से एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। युवाओं में प्रतियोगी परीक्षाओं की पारदर्शिता पर सवाल, पदों का लंबा इंतज़ार, और राजनीतिक दखल जैसी बातें बार-बार सामने आती रही हैं।
राज्य के पहाड़ी इलाकों में तो हालात और भी मुश्किल हैं — जहां शिक्षा पूरी करने के बाद भी नौकरी के अवसर बेहद सीमित हैं।
हर साल हजारों युवा UKPSC, UKSSSC, या अन्य सरकारी परीक्षाओं में भाग लेते हैं, लेकिन परिणाम आने में देरी और भर्ती घोटालों ने युवाओं के विश्वास को कमजोर किया है। ऐसे में अगर नेताओं पर भाई-भतीजावाद के आरोप लगते हैं, तो यह असंतोष और बढ़ा देता है।
राजनीतिक दबदबा या भ्रष्टाचार?
अगर आरोप सही साबित होते हैं, तो यह उत्तराखंड की राजनीति पर एक और दाग होगा। राज्य में पहले भी कई बार सरकारी नौकरियों में अनुचित नियुक्तियों और घोटालों के आरोप लग चुके हैं — चाहे वह UKSSSC पेपर लीक मामला हो या सरकारी ठेकों में अनियमितता का मुद्दा।
इस मामले में खास बात यह है कि जिस नेता पर आरोप लगे हैं, वह भाजपा का वरिष्ठ विधायक स्तर का व्यक्ति बताया जा रहा है। अभी तक उनके नाम का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन बेरोजगार संघ का कहना है कि आज या कल तक वह नाम सार्वजनिक किया जाएगा।
निष्कर्ष: बेरोजगारी सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, युवाओं के भविष्य का सवाल है
उत्तराखंड का युवा आज पढ़ा-लिखा है, जागरूक है, और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने को तैयार है। बेरोजगार संघ जैसे संगठन भले ही राजनीतिक न हों, लेकिन वे उस वर्ग की आवाज हैं जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
अगर ये आरोप सच साबित होते हैं, तो यह न केवल प्रशासनिक बल्कि नैतिक असफलता भी होगी। ऐसे मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही ही एकमात्र रास्ता है जिससे जनता का विश्वास वापस पाया जा सकता है।