Rampur Tiraha Golikand Main Witness Took Loans Three Times: मिलिए रामपुर तिराहा कांड के मुख्य गवाह से, केस लड़ने को तीन बार लोन; जलियावाला बाग जैसी बर्बरता

Rishab Gusain
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उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में रामपुर तिराहा गोलीकांड (1994) एक ऐसा काला अध्याय है, जिसे भुलाना आसान नहीं है। यह सिर्फ एक गोलीकांड नहीं था, बल्कि उस दौर की पुलिस बर्बरता का प्रतीक था, जिसने लोगों को जलियावाला बाग की त्रासदी की याद दिला दी थी।

आज, इस घटना को हुए 31 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन न्याय की लड़ाई अब भी अधूरी है। इस संघर्ष की सबसे मार्मिक कहानी चंपावत जिले के नवीन भट्ट की है, जिन्हें इस कांड का मुख्य गवाह माना जाता है।

अकेले दम पर 30 साल से लड़ाई

नवीन भट्ट, खेतीखान के कानाकोट गांव के निवासी हैं। वे पिछले तीन दशकों से अपने खर्चे पर मुजफ्फरनगर की अदालत में गवाही देने जाते रहे हैं। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ अपना रोजगार खोया, बल्कि परिवार की जिम्मेदारियों के बीच न्याय की इस लंबी लड़ाई को भी निभाया।

नवीन का कहना है कि उन्हें सरकार से कोई सहायता नहीं मिली। यहां तक कि अब तक उन्हें राज्य आंदोलनकारी का दर्जा भी नहीं दिया गया है। अदालत की हर तारीख पर पहुंचने के लिए उन्होंने तीन बार बैंक से लोन लिया—हर बार 60-60 हजार रुपये का। इतना ही नहीं, यात्रा और मुकदमेबाजी के खर्च ने उन्हें आर्थिक रूप से बेहद कमजोर कर दिया।

उस रात का भयावह मंजर

1 और 2 अक्टूबर 1994 की रात नवीन भट्ट की आंखों के सामने घटी। वे बताते हैं कि उस समय वे मुजफ्फरनगर में काम करते थे, लेकिन राज्य आंदोलन की पुकार पर सब कुछ छोड़कर आंदोलनकारियों के साथ दिल्ली कूच कर रहे थे।

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रामपुर तिराहे पर पुलिस ने बेरिकेड लगाकर आंदोलनकारियों को रोका। शाम करीब आठ बजे अचानक लाठीचार्ज और गोलीबारी शुरू हो गई। पूरी रात पुलिस की बर्बरता जारी रही।

नवीन बताते हैं कि उस रात महिलाओं को गन्ने के खेतों और अधूरे मकानों में खींचकर उनके साथ दुष्कर्म किया गया। सुबह जब आंदोलनकारी इकट्ठा हुए, तो सात लोगों की लाशें सड़क पर बिछी हुई थीं। यह नजारा हमेशा उनकी आंखों में जिंदा है।

अदालत का फैसला और गवाहों की कमी

मार्च 2024 में, लंबे इंतजार के बाद, मुजफ्फरनगर की अदालत ने PAC (प्रांतीय सशस्त्र बल) के दो जवानों को महिलाओं से दुष्कर्म का दोषी करार दिया। लेकिन यह न्याय अधूरा है, क्योंकि इस केस के 12 गवाहों में से पांच की मौत हो चुकी है।

आज भी नवीन अकेले दम पर इस केस को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार की ओर से समर्थन न मिलने के बावजूद वे हार नहीं मानेंगे, क्योंकि यह सिर्फ उनका निजी संघर्ष नहीं, बल्कि पूरे राज्य आंदोलन की लड़ाई है।

आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इस अवसर पर शहीद आंदोलनकारियों को नमन किया। उन्होंने कहा कि “रामपुर तिराहा गोलीकांड में शहादत देने वाले वीर आंदोलनकारियों के बलिदान के कारण ही आज उत्तराखंड राज्य का निर्माण संभव हुआ। सरकार उनके सपनों के अनुरूप राज्य के विकास के लिए प्रतिबद्ध है।”

लेकिन सवाल यह भी उठता है कि जब सरकार उनके बलिदान को इतना महत्व देती है, तो फिर प्रमुख गवाह नवीन भट्ट जैसे लोगों को क्यों अनदेखा किया जा रहा है?

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निष्कर्ष

रामपुर तिराहा गोलीकांड आज भी हमें यह याद दिलाता है कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन कितने बलिदानों और संघर्षों से गुज़रा है। नवीन भट्ट जैसे लोग न सिर्फ गवाह हैं, बल्कि उस दौर के जिंदा दस्तावेज़ हैं।

जरूरत है कि सरकार और समाज दोनों मिलकर ऐसे लोगों का सम्मान करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश मिले कि आंदोलनकारियों और गवाहों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाती।

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Rishab Gusain is a Digital Marketing Executive and skilled content writer from Dehradun, Uttarakhand. With experience working for several national and international brands, he has helped businesses achieve remarkable organic growth through his strategic digital marketing approach. Deeply connected to his roots, Rishab is passionate about showcasing the rich culture, travel destinations, and traditions of Uttarakhand. His engaging content has attracted a growing readership, hitting over 10,000 visits in just two months.
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