देहरादून/रुद्रप्रयाग — उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों, विशेषकर केदारघाटी में, चारधाम यात्रा के दौरान हेलीकॉप्टर सेवाओं में हो रही लापरवाहियाँ अब यात्रियों की सुरक्षा ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी खतरे का संकेत बन चुकी हैं। हाल के वर्षों में हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसने सरकार और स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं बनीं चिंता का विषय
चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए चलाई जा रही हेलीकॉप्टर सेवाएं अब कई बार दुर्घटनाओं की शिकार हो चुकी हैं। खराब मौसम, तकनीकी खामी और पायलट की लापरवाही जैसी वजहों के चलते कई जानें जा चुकी हैं। इन दुर्घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मौजूदा एविएशन इंफ्रास्ट्रक्चर इन क्षेत्रों में इस स्तर की उड़ानों के लिए तैयार है?
तेज आवाज और उड़ानों से इको सिस्टम पर असर
हेलीकॉप्टरों की लगातार उड़ानें और उनकी तेज गड़गड़ाहट से केदारघाटी और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में वन्यजीवों का जीवन बाधित हो रहा है। हिमालयी वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार, शोर के कारण जंगली जानवरों के व्यवहार में बदलाव देखा गया है। पक्षियों के घोंसलों पर प्रभाव, प्रजनन दर में गिरावट और प्रवासी प्रजातियों की आवाजाही में कमी जैसे लक्षण सामने आए हैं।
उड़ानों में मानकों की अनदेखी
विमानन महानिदेशालय (DGCA) और वन विभाग द्वारा हेलीकॉप्टर सेवाओं के लिए कई मानक तय किए गए हैं, जैसे—
- उड़ानों की अधिकतम सीमा
- उड़ान मार्ग में संवेदनशील वन क्षेत्रों से दूरी
- निश्चित समय पर ही उड़ानें
- सीमित लैंडिंग और टेकऑफ ऑपरेशन्स
लेकिन स्थानीय रिपोर्ट्स और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अनुसार, इन मानकों का पालन नहीं हो रहा है। कई बार उड़ानें निर्धारित ऊंचाई से नीचे होती हैं, जिससे भूस्खलन और हिमखंड टूटने जैसी घटनाओं का भी खतरा बढ़ जाता है।
पर्यावरणविदों की चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेताया है कि यदि इसी तरह अनियंत्रित हेलीकॉप्टर उड़ानें जारी रहीं, तो केदारघाटी और आसपास के इको-सेंसिटिव जोन में स्थायी पारिस्थितिक नुकसान हो सकता है। हिमालयी क्षेत्रों का पारिस्थितिक तंत्र अत्यंत नाजुक है, और वहाँ होने वाले किसी भी असंतुलन का असर नीचे के इलाकों पर भी पड़ता है।
प्रशासन और सरकार की भूमिका सवालों के घेरे में
स्थानीय प्रशासन द्वारा हेलीकॉप्टर सेवाओं को नियंत्रित करने की बात जरूर की जाती है, लेकिन निगरानी की व्यवस्था कमजोर दिखाई देती है। कई बार पर्यावरणीय क्लीयरेंस के बिना ही हेलीपैड बना दिए जाते हैं या उड़ानों की संख्या तय सीमा से अधिक होती है।
क्या हो सकते हैं समाधान?
- हेलीकॉप्टर उड़ानों पर सीमा तय हो — रोजाना की अधिकतम उड़ानों की सीमा तय कर निगरानी बढ़ाई जाए।
- ईको-सेंसिटिव जोन को ‘नो-फ्लाई जोन’ घोषित किया जाए
- सौर ऊर्जा या इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाए — विशेष रूप से गौरीकुंड से केदारनाथ तक बैटरी चालित वाहनों की व्यवस्था की जाए।
- हेलीकॉप्टर कंपनियों के लिए सख्त मानक और लाइसेंस प्रक्रिया लागू हो
- स्थानीय समुदायों और पर्यावरणविदों को निगरानी प्रणाली में जोड़ा जाए
चारधाम यात्रा के दौरान हेलीकॉप्टर सेवाएं जहां तीर्थयात्रियों के लिए सहूलियत का माध्यम हैं, वहीं इनके दुष्प्रभावों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। यात्रियों की सुरक्षा और हिमालय की पारिस्थितिक शुद्धता—दोनों के बीच संतुलन बनाना अब समय की मांग है। यह जरूरी है कि नियमों का कड़ाई से पालन हो और हेलीकॉप्टर सेवाओं की निगरानी वैज्ञानिक और पारदर्शी तरीके से की जाए।