उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) के पेपर लीक प्रकरण ने राज्य की सियासत और सड़कों पर लगातार उबाल मचा रखा है। बेरोजगार युवा लंबे समय से सीबीआई जांच, दोषियों की गिरफ्तारी और परीक्षा निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। इसी कड़ी में हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में चल रहा आमरण अनशन सोमवार को उस वक्त हिंसक मोड़ लेता दिखा जब पुलिस ने आंदोलनकारी छात्र भूपेंद्र सिंह कोरंगा को जबरन उठाकर अस्पताल पहुंचा दिया।
अनशनकारी को जबरन ले गई पुलिस, धक्का-मुक्की में छात्राएं हुईं घायल
धरना स्थल पर अचानक भारी पुलिस बल की तैनाती की गई। सिटी मजिस्ट्रेट और सीओ सिटी की मौजूदगी में पुलिसकर्मियों ने भूपेंद्र को खींचते हुए बाहर निकाला और एंबुलेंस में बैठाकर ले गई। इस दौरान युवाओं और पुलिस के बीच जबरदस्त धक्का-मुक्की हुई।
हंगामे में कई युवाओं को चोटें आईं, छात्राओं के कपड़े फट गए और कुछ का चश्मा टूट गया। युवाओं का आरोप है कि पुलिस ने शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने के लिए बल प्रयोग किया और महिला-पुरुष का कोई भेदभाव नहीं किया गया।
पुलिस कार्रवाई पर युवाओं का गुस्सा
धरना स्थल पर मौजूद छात्रों ने इसे बेरोजगारों की आवाज दबाने की कोशिश बताया। युवाओं ने कहा कि सरकार बजाय समाधान निकालने के, आंदोलनकारियों पर दबाव बनाने का काम कर रही है।
युवतियों ने आरोप लगाया कि उन्हें घसीटते समय अभद्रता की गई। इस घटना के बाद आंदोलनकारी पुलिस के खिलाफ लिखित तहरीर तैयार कर रहे हैं, जिसे डीजीपी को भेजा जाएगा।
प्रशासन का पक्ष: स्वास्थ्य बिगड़ने का था खतरा
प्रशासन का कहना है कि अनशन पर बैठे भूपेंद्र कोरंगा की तबीयत बिगड़ रही थी। लंबे समय से भूख हड़ताल पर होने के चलते उन्हें अस्पताल ले जाना जरूरी था। हालांकि आंदोलनकारियों का मानना है कि यह केवल आंदोलन को तोड़ने का बहाना है।
युवाओं का गुस्सा: करियर अंधकार में
धरने में शामिल छात्रा ममता ने कहा कि बार-बार पेपर लीक से उनका भविष्य अंधकार में चला गया है। घर वाले अब कहते हैं कि नौकरी की उम्मीद छोड़कर शादी कर लो। उनकी आपबीती सुनकर आंदोलन स्थल पर मौजूद कई लोग भावुक हो गए।
इसी तरह अन्य युवाओं ने भी कहा कि बार-बार भर्ती परीक्षाओं में धांधली से उनका आत्मविश्वास टूट गया है। यह केवल रोजगार का सवाल नहीं, बल्कि पूरे भविष्य का संकट है।
आंदोलन को मिला व्यापक समर्थन
हल्द्वानी में चल रहे इस आंदोलन को कई संगठनों और समूहों का समर्थन मिल रहा है। बेरोजगार संघ, वंदे मातरम ग्रुप और उत्तराखंड एकता मंच के संयोजकों ने भी भूख हड़ताल शुरू कर दी है।
आंदोलनकारियों ने रविवार को सरकार की नीतियों पर तंज कसते हुए भैंस के आगे बीन बजाने का प्रतीकात्मक प्रदर्शन भी किया था। उनका कहना है कि सरकार युवाओं की आवाज सुन ही नहीं रही, इसलिए यह कदम उठाना पड़ा।
सीएम से बातचीत भी न बनी हल
रविवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद फोन कर भूपेंद्र कोरंगा से बात की। सीएम ने उनकी सेहत का हालचाल पूछा और आंदोलन खत्म करने की अपील की। लेकिन भूपेंद्र ने साफ कहा कि जब तक तीन-चार प्रमुख मांगें पूरी नहीं होंगी—सीबीआई जांच, परीक्षा निरस्त करना और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई—तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
व्यक्तिगत दृष्टिकोण: सरकार और युवाओं के बीच संवाद जरूरी
हल्द्वानी की यह घटना यह बताती है कि बेरोजगार युवाओं में असंतोष गहराता जा रहा है। पहाड़ी राज्यों में वैसे ही रोजगार के अवसर सीमित हैं, और जब भर्ती परीक्षाओं में धांधली के आरोप लगते हैं तो युवाओं का धैर्य टूटना स्वाभाविक है।
मेरी राय में, सरकार को सिर्फ पुलिस बल या दबाव डालने के बजाय संवाद की राह अपनानी चाहिए। यदि समय रहते समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है और सरकार के लिए भी चुनौती खड़ी कर सकता है।
निष्कर्ष
UKSSSC पेपर लीक प्रकरण केवल एक परीक्षा का मामला नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य और पूरे उत्तराखंड की व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। हल्द्वानी का यह दृश्य दिखाता है कि बेरोजगार युवा अब चुप बैठने वाले नहीं हैं। उनका आंदोलन केवल नौकरी पाने का नहीं, बल्कि सिस्टम को साफ और पारदर्शी बनाने की लड़ाई है।