Air Quality Worsens Ahead Of Diwali In Uttarakhand: दिवाली से पहले उत्तराखंड की भी बिगड़ने लगी आबोहवा, इस शहर का सबसे बुरा हाल

Rishab Gusain
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Rishab Gusain is a Digital Marketing Executive and skilled content writer from Dehradun, Uttarakhand. With experience working for several national and international brands, he has helped...
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जैसे-जैसे दिवाली करीब आ रही है, वैसे-वैसे उत्तराखंड की हवा का रंग बदलने लगा है। जिस राज्य को प्रकृति और शुद्ध वातावरण के लिए जाना जाता है, वहां भी अब प्रदूषण की परतें मोटी होती जा रही हैं। देहरादून और काशीपुर में वायु गुणवत्ता का स्तर (AQI) चौंकाने वाली स्थिति में पहुंच गया है। एक ओर जहां काशीपुर का औसत AQI सौ के पार चला गया है, वहीं देहरादून में यह 94 दर्ज किया गया — जो बीते चार महीनों में सबसे खराब स्थिति है।

इसके उलट, टिहरी गढ़वाल की हवा अभी भी सबसे स्वच्छ मानी जा रही है, जहां औसत AQI मात्र 48 रहा। यह अंतर बताता है कि किस तरह शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों ने उत्तराखंड के कुछ इलाकों में हवा को जहरीला बना दिया है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UKPCB) ने देहरादून, रुड़की, ऋषिकेश, हल्द्वानी, काशीपुर और टिहरी जैसे छह प्रमुख शहरों में रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम सक्रिय किया है।
सदस्य सचिव डॉ. पराग मधुकर धकाते के अनुसार, यह डेटा 24 घंटे की निगरानी से तैयार किया जा रहा है ताकि समय रहते प्रदूषण नियंत्रण के उपाय किए जा सकें।

ताजा रिपोर्ट के अनुसार:

  • काशीपुर: AQI 100 से अधिक
  • देहरादून: AQI 94
  • रुड़की: AQI 85
  • ऋषिकेश: AQI 82
  • हल्द्वानी: AQI 59
  • टिहरी: AQI 48
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क्यों बढ़ रहा है प्रदूषण

विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड में प्रदूषण के बढ़ने के पीछे कई कारण हैं —

  1. वाहनों और उद्योगों का धुआं
  2. सड़क निर्माण के दौरान उड़ने वाली धूल
  3. मौसम में नमी की कमी और हवा की गति धीमी होना
  4. त्योहारों के समय बाजारों में बढ़ी भीड़ और पटाखों का प्रयोग

देहरादून जैसे शहरों में शाम होते-होते हवा में नमी घट जाती है और धूल के कण वातावरण में स्थिर हो जाते हैं, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है।

लोगों की सेहत पर असर

मौसम में बदलाव और प्रदूषण के मिश्रण ने दिल, बीपी और सांस के मरीजों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
दून अस्पताल में इमरजेंसी नोडल अधिकारी डॉ. अमित अरुण ने बताया कि रोजाना 70 से 80 मरीज रात के समय अस्पताल पहुंच रहे हैं, जिनमें से करीब 30 मरीज सांस या दिल की समस्या से जूझ रहे हैं।
कोरोनेशन अस्पताल में भी स्थिति समान है, जहां रात की इमरजेंसी में 40 प्रतिशत मरीज प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के लक्षणों के साथ आ रहे हैं।

स्थिति को देखते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने दीपावली के दौरान सभी सरकारी अस्पतालों को हाई अलर्ट पर रखा है। डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं।

ध्वनि प्रदूषण पर भी कार्रवाई

देहरादून में केवल हवा ही नहीं, बल्कि शोर भी बढ़ता जा रहा है।
त्यागी रोड पर पड़ोसी की शिकायत के बाद नगर निगम ने इरानी ट्रेडर्स पर ध्वनि प्रदूषण फैलाने के लिए 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। शिकायतकर्ता ने बताया कि उनके घर के पास चल रही मशीन की आवाज असहनीय हो चुकी थी।

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इसके अलावा दून विवि रोड स्थित शिवम विहार हाउसिंग सोसायटी पर दूषित जल बहाने के मामले में भी 50 हजार रुपये का चालान किया गया।

मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अविनाश खन्ना ने कहा कि लोग गाइडलाइन का पालन करें, वरना सख्त कार्रवाई जारी रहेगी।

घंटाघर पर हवा सबसे ज्यादा जहरीली

राजधानी देहरादून में वायु प्रदूषण का स्तर घंटाघर क्षेत्र में सबसे अधिक पाया गया, जहाँ AQI 120 के करीब दर्ज किया गया।
नेहरू कॉलोनी में 102 और दून विश्वविद्यालय क्षेत्र में 70 के आसपास रहा। शहर के अन्य इलाकों — जैसे प्रेमनगर, राजपुर रोड और बल्लूपुर — में भी प्रदूषण के स्तर में लगातार वृद्धि देखी जा रही है।

सरकार की तैयारी – अब ड्रोन और टैंकर से होगा धूल नियंत्रण

डॉ. धकाते के अनुसार, स्थिति अभी चिंताजनक नहीं है लेकिन सतर्कता जरूरी है।
अगर प्रदूषण का स्तर और बढ़ता है तो सरकार ड्रोन और पानी के टैंकरों के जरिये सड़कों पर छिड़काव करेगी, ताकि धूल के कणों को दबाया जा सके।
साथ ही, प्रमुख शहरों में औद्योगिक धुएं और निर्माण कार्यों की निगरानी के लिए विशेष टीमें गठित की जा रही हैं।

निष्कर्ष

उत्तराखंड का पर्यावरण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक की जागरूकता पर भी निर्भर है।
काशीपुर और देहरादून जैसे शहरों को अगर सांस लेने लायक बनाना है, तो हमें अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाने होंगे — जैसे सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग, अनावश्यक पटाखों से परहेज, और हरित पर्वों को अपनाना।

प्रदूषण के खिलाफ यह जंग तभी जीती जा सकती है जब विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कायम रखा जाए।

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Rishab Gusain is a Digital Marketing Executive and skilled content writer from Dehradun, Uttarakhand. With experience working for several national and international brands, he has helped businesses achieve remarkable organic growth through his strategic digital marketing approach. Deeply connected to his roots, Rishab is passionate about showcasing the rich culture, travel destinations, and traditions of Uttarakhand. His engaging content has attracted a growing readership, hitting over 10,000 visits in just two months.
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