उत्तराखंड के पहाड़ इन दिनों मूसलाधार बारिश से जूझ रहे हैं। लगातार हो रही बारिश से राज्य की प्रमुख नदियां अलकनंदा और मंदाकिनी खतरे के निशान को पार कर चुकी हैं। श्रीनगर और रुद्रप्रयाग में हालात गंभीर होते देख प्रशासन ने हाई अलर्ट घोषित कर दिया है। नदी किनारे रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील की गई है।
धारी देवी मंदिर पर संकट
श्रीनगर स्थित धारी देवी मंदिर, जिसे अलकनंदा घाटी का रक्षक माना जाता है, इस बार खुद पानी के संकट में घिर गया है। मंदिर की पार्किंग पूरी तरह जलमग्न हो चुकी है। श्रद्धालु और दुकानदारों को मंदिर के आस-पास से हटना पड़ा है। स्थानीय लोग मानते हैं कि धारी देवी को अलकनंदा की “माता” कहा जाता है और जब नदी का जलस्तर इतना बढ़ता है, तो यह न सिर्फ प्राकृतिक खतरे का संकेत है बल्कि लोगों के लिए भावनात्मक झटका भी होता है।
अलकनंदा का उफान और रुद्रप्रयाग की स्थिति
श्रीनगर के अल्केश्वर घाट पर अलकनंदा नदी खतरनाक स्तर से ऊपर बह रही है। तेज बहाव की वजह से घाट के आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। रुद्रप्रयाग पुलिस ने चेतावनी दी है कि अलकनंदा और मंदाकिनी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। आम लोगों को नदी किनारे न जाने और सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने के निर्देश दिए गए हैं।
सड़कें और यात्रियों की मुश्किलें
लगातार बारिश ने चारधाम यात्रा के मार्गों को भी प्रभावित किया है। बद्रीनाथ राजमार्ग पर पपड़ासू पुल के पास अलकनंदा नदी सड़क तक पहुंच गई है। इससे मार्ग पूरी तरह से बंद हो गया है और यात्री जगह-जगह फंसे हुए हैं। SSP पौड़ी लोकेश्वर सिंह ने बताया कि यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर रोककर वैकल्पिक मार्गों से आगे भेजा जा रहा है।
इसी तरह, जजरेड क्षेत्र में कालसी-चकराता मार्ग भारी बारिश और मलबे के कारण बंद हो गया है। दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लगी हैं। JCB मशीनें लगाकर सड़क खोलने की कोशिश जारी है, लेकिन लगातार हो रही बारिश के कारण राहत मिलने में समय लग सकता है।
जनता से सतर्क रहने की अपील
प्रशासन और पुलिस-प्रशासन की टीमें पूरी तरह सतर्क हैं। SDRF को अलर्ट पर रखा गया है। रुद्रप्रयाग और श्रीनगर के संवेदनशील इलाकों में राहत-बचाव अभियान चल रहा है। स्थानीय लोगों से अपील की गई है कि वे अफवाहों पर ध्यान न दें और केवल प्रशासनिक निर्देशों का पालन करें। मौसम विभाग ने अगले 24 घंटों तक भारी बारिश की संभावना जताई है।
मेरा दृष्टिकोण और स्थानीय सच्चाई
मैंने जब भी श्रीनगर या रुद्रप्रयाग का दौरा किया है, हमेशा यही महसूस किया कि यहां के लोग नदी के साथ जीते हैं। खेती, आस्था और रोजमर्रा का जीवन—सब कुछ नदियों पर निर्भर है। लेकिन बरसात में यही नदियां डर का पर्याय बन जाती हैं। खासकर अलकनंदा का उफान कई बार गांवों को निगल चुका है।
मेरा मानना है कि हमें इन क्षेत्रों के लिए सिर्फ आपदा प्रबंधन पर नहीं, बल्कि दीर्घकालिक योजना पर ध्यान देना होगा। सुरक्षित नदी तटबंध, आधुनिक जल चेतावनी प्रणाली और संवेदनशील जगहों से आबादी का पुनर्वास—ये सब अब बेहद जरूरी हो गए हैं।
निष्कर्ष
उत्तराखंड की नदियां हमारी धरोहर हैं, लेकिन उनका रौद्र रूप हमें यह याद दिलाता है कि प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा कितना भयानक हो सकता है। इस समय जरूरी है कि जनता और प्रशासन दोनों मिलकर सावधानी बरतें और किसी भी लापरवाही से बचें। बरसात का ये दौर गुजर जाएगा, लेकिन इससे मिली सीख हमें भविष्य के लिए तैयार कर सकती है।