उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों को करारा झटका दिया है। अदालत ने साफ कर दिया कि कॉलेजों द्वारा छात्रों से 80 हजार रुपये की जगह 2.15 लाख रुपये वसूलना गलत था। अब कॉलेजों को यह अतिरिक्त वसूली वापस करनी होगी।
2018 का आदेश बरकरार
बुधवार को न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कॉलेजों की रिव्यू अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने 2018 में एकलपीठ द्वारा दिए गए आदेश को सही ठहराया। उस आदेश में सरकार के 14 अक्तूबर 2015 के शासनादेश को निरस्त किया गया था, जिसके जरिए फीस बढ़ाकर 2.15 लाख रुपये कर दी गई थी और इसे 2013-14 सत्र से लागू मान लिया गया था।
बीएएमएस छात्र ललित तिवारी और अन्य ने इस शासनादेश को चुनौती दी थी। छात्रों का तर्क था कि सरकार को सीधे फीस बढ़ाने का अधिकार नहीं है। 2006 के अधिनियम के अनुसार यह जिम्मेदारी फीस निर्धारण समिति की है। अदालत ने भी इसी तर्क को सही मानते हुए फैसला छात्रों के पक्ष में सुनाया।
करोड़ों रुपये की वसूली, अब करनी होगी वापसी
इस निर्णय से साफ है कि कॉलेजों ने बीते वर्षों में जो अतिरिक्त रकम वसूली, उसे अब लौटाना पड़ेगा। अकेले पतंजलि आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज ने पूर्व में कोर्ट को हलफनामे के जरिए बताया था कि वह लगभग 21 करोड़ रुपये लौटाने के लिए बाध्य है। राज्य में कुल 12 निजी आयुर्वेदिक कॉलेज हैं, और इन सभी ने मिलकर करोड़ों रुपये की वसूली की है।
छात्रों और परिवारों को बड़ी राहत
यह फैसला हजारों छात्रों और उनके परिवारों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। पहाड़ों में पढ़ाई पहले से ही महंगी और मुश्किल है। ऐसे में जब कॉलेज मनमानी फीस वसूलते हैं, तो यह आम मध्यमवर्गीय परिवार के लिए बड़ी परेशानी बन जाती है। अदालत के इस आदेश से अब छात्रों पर आर्थिक बोझ कम होगा और उन्हें न्याय मिला है।