रुद्रप्रयाग की नारी शक्ति: दिन में मां, रात में खेतों की पहरेदार – जंगली जानवरों से भिड़कर बचा रहीं फसलें

Vaibhav Kathait
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उत्तराखंड की पहाड़ियां अपनी प्राकृतिक सुंदरता, नदियों और मंदिरों के लिए तो जानी ही जाती हैं, लेकिन यहां का ग्रामीण जीवन उतना ही संघर्षों से भरा हुआ है। खेती-किसानी आज भी अधिकांश ग्रामीण परिवारों की जीवनरेखा है। परंतु जंगली जानवरों का आतंक किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। रुद्रप्रयाग जिले के तिलवाड़ा नगर पंचायत के रामपुर वार्ड में महिलाएं रात-रात भर खेतों में डेरा डालकर अपनी मेहनत की फसल को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

दिनभर घर की जिम्मेदारी, रात में खेतों की पहरेदारी

रामपुर वार्ड की महिलाएं दिन में घर-गृहस्थी, बच्चों की देखभाल और दैनिक कामकाज संभालती हैं। लेकिन जैसे ही रात का अंधेरा छाता है, वे खेतों की रखवाली करने निकल पड़ती हैं। हाथ में लाठी, टॉर्च और कभी-कभी मशाल लेकर महिलाएं खेतों के किनारे डेरा डालती हैं।

इन महिलाओं का कहना है कि –
“हमने मेहनत करके फसल बोई है। अगर इसे रातों-रात जंगली जानवर बर्बाद कर दें, तो हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। डर तो लगता है, लेकिन अपनी मेहनत बचाना और परिवार का पेट भरना हमारी मजबूरी भी है और जिम्मेदारी भी।”

दिनभर घर की जिम्मेदारी, रात में खेतों की पहरेदारी

रामपुर वार्ड की महिलाएं दिन में घर-गृहस्थी, बच्चों की देखभाल और दैनिक कामकाज संभालती हैं। लेकिन जैसे ही रात का अंधेरा छाता है, वे खेतों की रखवाली करने निकल पड़ती हैं। हाथ में लाठी, टॉर्च और कभी-कभी मशाल लेकर महिलाएं खेतों के किनारे डेरा डालती हैं।

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इन महिलाओं का कहना है कि –
“हमने मेहनत करके फसल बोई है। अगर इसे रातों-रात जंगली जानवर बर्बाद कर दें, तो हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। डर तो लगता है, लेकिन अपनी मेहनत बचाना और परिवार का पेट भरना हमारी मजबूरी भी है और जिम्मेदारी भी।”

 महिलाओं की हिम्मत और जज़्बा

रामपुर वार्ड की महिलाओं ने साबित कर दिया है कि चुनौतियां चाहे जितनी बड़ी हों, सामूहिक हिम्मत और एकजुटता से उनका सामना किया जा सकता है।

इन महिलाओं ने तय कर लिया है कि वे डरकर घरों में नहीं बैठेंगी। वे अपने खेतों में डेरा डालकर पूरी रात पहरा देती हैं। कभी शोर मचाकर, कभी ढोलक बजाकर, तो कभी मशाल जलाकर जंगली जानवरों को भगाती हैं।

यह केवल फसल बचाने की जद्दोजहद नहीं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं की जिजीविषा और साहस की मिसाल है।

जान का भी खतरा

फसलों की सुरक्षा करते-करते कई बार ग्रामीण महिलाओं को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है। गुलदार और भालू जैसे खतरनाक जानवरों के सामने खड़े होना आसान नहीं।

Uttarakhand Magazine से बातचीत में एक महिला ने बताया –
“हमें डर लगता है, लेकिन अगर हम खेतों में नहीं जाएंगे तो हमारी सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी। हमारी रोज़ी-रोटी फसल पर ही निर्भर है।”

कई बार महिलाओं को छोटे बच्चों को भी साथ लेकर खेतों में जाना पड़ता है, जिससे खतरा और बढ़ जाता है।

एक बड़ी समस्या का हिस्सा

यह समस्या केवल रुद्रप्रयाग तक सीमित नहीं है। पूरे गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के गांवों में किसान जंगली जानवरों से परेशान हैं।

  • चमोली, टिहरी और पौड़ी में गुलदार का आतंक आम है।
  • अल्मोड़ा और नैनीताल में बंदरों की वजह से किसान खेत खाली छोड़ने पर मजबूर हैं।
  • पिथौरागढ़ और बागेश्वर में जंगली सूअर सबसे बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं।
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इससे न केवल किसानों की आय पर असर पड़ रहा है, बल्कि ग्रामीण पलायन की समस्या भी तेज हो रही है। लोग कहते हैं – “जब खेती सुरक्षित नहीं है, तो गांव में रहकर करेंगे क्या?”

Uttarakhand Magazine की रिपोर्ट्स यह संकेत देती हैं कि अगर जल्द समाधान नहीं निकाला गया तो पहाड़ी खेती पूरी तरह संकट में आ सकती है।

 समाधान की ओर

विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों का मानना है कि इस समस्या के समाधान के लिए स्थानीय समुदाय, प्रशासन और सरकार – सभी को मिलकर काम करना होगा।

  • फसल सुरक्षा योजनाएं और वन्यजीव नियंत्रण नीति को मजबूत करना होगा।
  • महिलाओं की हिम्मत और जज्बे को देखते हुए उन्हें स्थानीय सुरक्षा दलों में शामिल किया जा सकता है।
  • गांव स्तर पर आधुनिक उपकरण और अलार्म सिस्टम उपलब्ध कराए जाएं।

 निष्कर्ष

रुद्रप्रयाग की महिलाएं केवल अपने खेतों की फसल नहीं बचा रहीं, बल्कि वे उत्तराखंड की नारी शक्ति की सच्ची तस्वीर भी पेश कर रही हैं। उनकी हिम्मत और संघर्ष इस बात का प्रमाण है कि पहाड़ की महिलाएं हर चुनौती का सामना कर सकती हैं।

लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक नहीं चल सकती। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे ग्रामीणों की मेहनत और जान-माल की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं।

Uttarakhand Magazine लगातार इस मुद्दे को उजागर कर रहा है और आने वाले समय में भी ग्रामीणों की आवाज़ को मंच देने का काम करता रहेगा। क्योंकि जब तक इन समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं होता, तब तक पहाड़ी किसानों का संघर्ष जारी रहेगा।

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