उत्तराखंड की जीवनरेखा मानी जाने वाली चारधाम यात्रा पांच दिनों के लंबे इंतज़ार और मौसम की मार झेलने के बाद आखिरकार फिर से शुरू हो गई है। शनिवार से श्रद्धालु अब बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की ओर रवाना हो सकेंगे। लगातार भारी बारिश और भूस्खलन के कारण 1 से 5 सितंबर तक यात्रा स्थगित रही थी, जिससे यात्रियों और स्थानीय लोगों दोनों को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।गढ़वाल कमिश्नर विनय शंकर पांडेय ने पुष्टि की है कि मौसम में सुधार को देखते हुए सरकार ने आंशिक रूप से यात्रा बहाल करने का निर्णय लिया है।
यमुनोत्री और गंगोत्री पर अभी भी संकट की छाया
हालांकि फिलहाल केवल बदरीनाथ और केदारनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले हैं। यमुनोत्री धाम तक पहुंचने वाले मार्गों पर अभी भी भूस्खलन और मलबे का खतरा बना हुआ है। उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने बताया कि हालात सामान्य होने में कुछ और दिन लग सकते हैं। वहीं गंगोत्री धाम की यात्रा शुरू करने पर जिला प्रशासन जल्द फैसला लेगा।यानी अभी यात्रियों को पूरी चारधाम यात्रा का आनंद लेने के लिए कुछ और इंतजार करना होगा।
आपदा का असर: इस बार सबसे कठिन रहा सफर
एसडीसी फाउंडेशन की रिपोर्ट बताती है कि इस साल यात्रा प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित रही।
- यमुनोत्री धाम : 26 दिन यात्रा बाधित रही
- गंगोत्री धाम : 31 दिन यात्रा बंद रही
- बदरीनाथ धाम : 11 दिन यात्रा रुकी
- केदारनाथ धाम : 8 दिन प्रभावित रहा
यही नहीं, करीब 89 दिन ऐसे भी रहे जब चारों धामों में यात्रियों की संख्या हजार से भी कम रही। यहां तक कि श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हेमकुंड साहिब की यात्रा भी बार-बार रुकावटों से प्रभावित हुई।
चारधाम का महत्व और चुनौतियां
चारधाम यात्रा सिर्फ धार्मिक आस्था का विषय नहीं है, बल्कि उत्तराखंड की आर्थिक धुरी भी है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और स्थानीय होटल, दुकानदार, घोड़े-खच्चर मालिक और छोटे कारोबारी इसी यात्रा पर निर्भर रहते हैं।
लेकिन जब लगातार बारिश और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं मार्गों को बाधित करती हैं, तो सबसे ज्यादा असर इन्हीं स्थानीय लोगों की आजीविका पर पड़ता है।
मैंने खुद कई बार देखा है कि जब यात्रा रुकती है, तो बदरीनाथ और केदारनाथ मार्ग पर बसे गांवों में सन्नाटा छा जाता है। छोटे-छोटे ढाबों में ताले लग जाते हैं और मजदूरी करने वाले लोग बेरोजगार हो जाते हैं।
निष्कर्ष
पांच दिन बाद यात्रा का फिर से शुरू होना श्रद्धालुओं के लिए राहत की खबर है। लेकिन यह भी सच है कि हर साल मानसून में चारधाम यात्रा इसी तरह प्रभावित होती है। जब तक ठोस इंफ्रास्ट्रक्चर और बेहतर आपदा प्रबंधन नहीं होगा, तब तक श्रद्धालुओं और स्थानीय निवासियों दोनों को परेशानी उठानी पड़ेगी।
चारधाम यात्रा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और अर्थव्यवस्था की आत्मा है। इसलिए इसे सुरक्षित और सतत बनाने की जिम्मेदारी सरकार और समाज दोनों की है।