उत्तराखंड में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के मामले ने नया मोड़ ले लिया है। हाईकोर्ट ने इस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इस मामले का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए, ताकि जिन स्कूलों पर आरोप हैं, वे अपना पक्ष अदालत में रख सकें।
याचिका और शिकायत का मूल
यह याचिका देहरादून के अधिवक्ता जसविंदर सिंह ने दायर की है। उनके अनुसार कई निजी स्कूल एडमिशन फीस, यूनिफॉर्म, रजिस्ट्रेशन और ट्यूशन फीस के अलावा अतिरिक्त शुल्क वसूल रहे हैं। यह फीस नियमों के खिलाफ है और माता-पिता पर आर्थिक बोझ डाल रही है।
सरकार के नियम
उत्तराखंड सरकार ने 2017 में नियम बनाए थे, जिनके मुताबिक:
- एक बार एडमिशन लेने के बाद दोबारा एडमिशन फीस नहीं ली जा सकती।
- कॉशन मनी पर कोई शुल्क नहीं लगाया जा सकता।
- स्कूल फीस में वृद्धि केवल तीन साल में एक बार और अधिकतम 10% तक ही की जा सकती है।
- किसी भी ट्रस्ट, समिति या स्कूल को चंदा वसूलने की अनुमति नहीं है।
इन नियमों के बावजूद कुछ निजी स्कूल लगातार माता-पिता से अतिरिक्त शुल्क वसूल रहे हैं।
हाईकोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि इस मामले को अखबारों और मीडिया में छपवाया जाए, ताकि आरोपित स्कूल अपना पक्ष रख सकें। साथ ही राज्य सरकार और सभी स्कूल एसोसिएशन को भी पक्षकार बनाने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को तय की है।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि निजी स्कूल मनमानी फीस वसूली नहीं कर सकते और सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य है। अब यह देखना होगा कि 31 अक्टूबर की सुनवाई में स्कूल और सरकार इस मामले में क्या जवाब देते हैं। यह कदम शिक्षा व्यवस्था में संतुलन और पारदर्शिता लाने के लिए अहम साबित हो सकता है।