उत्तराखंड के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी भगवद गीता और रामायण, सरकार ने NCERT को सौंपी जिम्मेदारी
देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने राज्य के 17,000 से अधिक सरकारी स्कूलों के छात्रों को भारत की सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। राज्य के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने बुधवार को बताया कि सरकार ने एनसीईआरटी (NCERT) को निर्देश दिया है कि भगवद गीता और रामायण को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
शिक्षा मंत्री ने कहा,
“मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ हुई बैठक में यह तय किया गया कि गीता और रामायण की शिक्षाएं छात्रों को दी जाएंगी। जब तक यह नया पाठ्यक्रम लागू नहीं होता, तब तक स्कूलों की दैनिक प्रार्थना सभा में इन ग्रंथों के श्लोकों का पाठ कराया जाएगा।”
यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के तहत लिया गया है, जिसका उद्देश्य छात्रों को न केवल शैक्षणिक रूप से समृद्ध बनाना है, बल्कि उन्हें संस्कार, नैतिक मूल्य और भारत की सांस्कृतिक विरासत से भी परिचित कराना है।
इससे पहले, 15 जुलाई को NCERT ने ‘वीणा’ नामक एक नई पाठ्यपुस्तक जारी की थी। यह किताब नई शिक्षा नीति के अनुसार तैयार की गई है और इसमें वैज्ञानिक सोच, भारतीय इतिहास, संस्कृति, और समाज से जुड़ी कहानियों को सम्मिलित किया गया है।
किताब में शामिल प्रमुख अध्याय:
- गंगा की कहानी: गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा के माध्यम से गंगा के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व को दर्शाया गया है।
- AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता): छात्रों को समझाया गया है कि मशीनें कैसे सोचती और निर्णय लेती हैं।
- गगनयान: भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन और ‘व्योममित्रा’ ह्यूमनॉइड की जानकारी।
- न्याय की कुर्सी: राजा भोज और विक्रमादित्य जैसे ऐतिहासिक पात्रों के माध्यम से न्याय और नैतिकता का परिचय।
- हाथी और चींटी: सरल कहानी के माध्यम से सड़क सुरक्षा जैसे गंभीर विषय को रोचक अंदाज़ में समझाया गया है।
- इसके अलावा काजीरंगा नेशनल पार्क, अजंता-एलोरा की गुफाएं, प्राकृतिक रंग, और पैरा ओलंपियन मुरलीकांत पेटकर पर आधारित अध्याय भी शामिल हैं।
NCERT ने इन नई किताबों को चरणबद्ध तरीके से लागू करना शुरू कर दिया है। कुछ कक्षाओं के लिए पुस्तकें पहले ही जारी की जा चुकी हैं, जबकि बाकी किताबें वर्ष के अंत तक उपलब्ध हो जाएंगी।
शिक्षा मंत्री रावत ने कहा कि यह पहल न केवल छात्रों को गहरी सांस्कृतिक समझ प्रदान करेगी, बल्कि उन्हें जीवन में कर्तव्यबोध, सदाचार और राष्ट्रीय गौरव से भी जोड़ने का कार्य करेगी।
उत्तराखंड शिक्षा व्यवस्था में यह बदलाव एक नई सोच और दिशा की ओर संकेत करता है — जहां शिक्षा केवल अंक लाने का माध्यम नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का साधन बनती जा रही है।