हरिद्वार में सामने आए 54 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले ने उत्तराखंड की प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घोटाले के चलते राज्य सरकार ने कड़ी कार्रवाई करते हुए तीन वरिष्ठ अधिकारियों—जिलाधिकारी हरिद्वार कर्मेन्द्र सिंह, आईएएस अधिकारी वरुण चौधरी और पीसीएस अधिकारी अजयवीर सिंह को निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई शहरी विकास सचिव रणवीर सिंह चौहान द्वारा की गई जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भूमि खरीद प्रक्रिया में बड़े स्तर पर अनियमितताएं और हेरफेर की गई थीं।
यह मामला हरिद्वार नगर निगम द्वारा 2024 में ग्राम सराय क्षेत्र में 2.3070 हेक्टेयर कृषि भूमि की खरीद से जुड़ा है। इस भूमि की बाज़ार कीमत लगभग 13 से 18 करोड़ रुपये आंकी गई थी, लेकिन इसे 54 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि में खरीदा गया। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यह सौदा तब हुआ जब राज्य में नगर निकाय चुनावों के चलते आदर्श आचार संहिता लागू थी। उस समय पूरी प्रशासनिक जिम्मेदारी नगर आयुक्त के पास थी। आश्चर्यजनक रूप से यह भूमि, जो एक कूड़ा डंपिंग ज़ोन के पास स्थित थी, बिना स्पष्ट उद्देश्य के खरीदी गई।
भूमि खरीद की प्रक्रिया बेहद संदिग्ध रही। 19 सितंबर से लेकर 26 अक्टूबर 2024 के बीच दस्तावेजी कार्रवाई पूरी की गई, और नवंबर में तीन चरणों में 33–34 बीघा भूमि अलग-अलग मालिकों से खरीदी गई। इस दौरान भूमि का उपयोग कृषि से गैर-कृषि में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को अविश्वसनीय तेजी से पूरा किया गया। केवल छह दिनों में धारा 143 के अंतर्गत भूमि का उपयोग बदल दिया गया, जिससे भूमि का मूल्य काफी बढ़ गया। खास बात यह रही कि 1 अक्टूबर को एसडीएम न्यायालय में पुराने राजस्व रिकॉर्ड (मेशलाबंद) को अपडेट करने की बजाय एक नया मेशलाबंद तैयार किया गया, जिससे हेरफेर की संभावना और अधिक बढ़ गई।
इस पूरे मामले में जिन अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई, उनमें सबसे पहले जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह का नाम आता है, जो उत्तर प्रदेश से 2020 में उत्तराखंड ट्रांसफर होकर आए थे और यह उनकी राज्य में पहली फील्ड पोस्टिंग थी। उन्होंने खुद को घोटाले से अनभिज्ञ बताते हुए निर्दोष होने का दावा किया है। वहीं, तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी, जो अब स्वास्थ्य विभाग में अपर सचिव के पद पर कार्यरत हैं, ने भी निलंबन की जानकारी होने से इनकार किया है और कहा है कि वे अपनी बात सक्षम अधिकारियों के समक्ष रखेंगे। पीसीएस अधिकारी अजयवीर सिंह, जो उस समय हरिद्वार के एसडीएम थे, पर दस्तावेजों को तेजी से निपटाने और भूमि उपयोग परिवर्तन की प्रक्रिया को बेहद जल्दबाज़ी में पूरा कराने का आरोप है।
यह मामला तब सामने आया जब भाजपा की किरण जैसवाल ने हरिद्वार की मेयर पद की शपथ ली। कार्यभार संभालते ही उन्हें इस भूमि सौदे की जानकारी मिली, जिसके बाद उन्होंने उच्च अधिकारियों को इस संबंध में अवगत कराया। इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के आदेश दिए। जांच पूरी होने पर राज्य सरकार ने सात अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की, जिनमें दो आईएएस और एक पीसीएस अधिकारी शामिल हैं। यह प्रकरण न केवल शासन की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और अनुभवहीन अधिकारियों की नियुक्तियों को लेकर भी नई बहस को जन्म देता है।