Nainital rape case: नाबालिग से रेप के आरोपी मोहम्मद उस्मान को हाईकोर्ट से राहत, अवैध निर्माण पर नहीं चलेगा बुलडोजर

Rishab Gusain
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नैनीताल: नाबालिग से रेप के आरोपी मोहम्मद उस्मान को हाईकोर्ट से राहत, अवैध निर्माण पर नहीं चलेगा बुलडोजर

नैनीताल न्यूज़: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी मोहम्मद उस्मान के खिलाफ जारी अतिक्रमण नोटिस को रद्द कर दिया है। अदालत ने प्रशासन की कार्रवाई को गलत बताते हुए उनसे सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आदेश दिया है।

उत्तराखंड न्यूज़ (Nainital News): नाबालिग से रेप के आरोपी मोहम्मद उस्मान के खिलाफ जारी अतिक्रमण नोटिस को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है और प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने इस कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन माना और प्रशासन को आरोपी से बिना शर्त माफी मांगने का आदेश दिया है।

यह मामला उस वक्त सुर्खियों में आया जब नैनीताल नगर पालिका ने उस्मान के घर को तीन दिन के भीतर तोड़ने का नोटिस जारी किया था, जिसे आरोपी के वकील डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

वकील ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार किसी भी निर्माण को गिराने से पहले 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है, जबकि उस्मान को सिर्फ तीन दिन का समय दिया गया और वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में है। कोर्ट ने प्रशासन की इस कार्रवाई को कानून के खिलाफ बताया और मामले को अनुचित करार दिया।

इस याचिका पर सुनवाई के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विशेष खंडपीठ का गठन किया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी शामिल थे। सुनवाई के दौरान नैनीताल के एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत में उपस्थित हुए, जबकि नगर पालिका नैनीताल के अधिशासी अधिकारी प्रथम और द्वितीय व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हुए।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अतिक्रमण नोटिस को बताया अवैध, आरोपी उस्मान से बिना शर्त माफी मांगने का आदेश

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 12 वर्षीय बालिका से रेप के आरोपी मोहम्मद उस्मान को नगर पालिका द्वारा जारी तीन दिन के अतिक्रमण नोटिस को अवैध ठहराते हुए उसे रद्द कर दिया है। कोर्ट ने प्रशासनिक अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए आरोपी से सार्वजनिक रूप से बिना शर्त माफी मांगने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार किसी भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई से पहले 15 दिन का नोटिस अनिवार्य है, जबकि इस मामले में केवल तीन दिन का समय दिया गया। कोर्ट ने इसे “प्रशासनिक जल्दबाज़ी और कानून की अनदेखी” करार दिया।

विशेष खंडपीठ में हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी शामिल रहे। सुनवाई के दौरान एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से उपस्थित हुए और नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी व्यक्तिगत रूप से पेश हुए।

कोर्ट ने नैनीताल में इस घटना के बाद साम्प्रदायिक तनाव और हिंसक प्रदर्शनों को लेकर भी नाराजगी जताई और कहा कि इस तरह की घटनाएं लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा हैं। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन और पुलिस की जिम्मेदारी है, और भविष्य में ऐसी लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

अगली सुनवाई 6 मई को, कोर्ट ने मांगी विस्तृत रिपोर्ट

इस मामले की अगली सुनवाई 6 मई, मंगलवार को होगी। हाईकोर्ट ने पुलिस प्रशासन और नगर पालिका दोनों से कहा है कि वे कोर्ट के आदेशों के अनुपालन में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

कोर्ट की यह सख्ती एक बार फिर यह स्पष्ट करती है कि उत्तराखंड में प्रशासनिक पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रिया का पालन कितना जरूरी है। यह मामला प्रशासन को यह संदेश देता है कि जल्दबाजी या भावनात्मक दबाव में की गई कार्रवाई संविधान और न्याय व्यवस्था के खिलाफ मानी जाएगी।

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