ऐपण कला उत्तराखंड: बागेश्वर की अर्चना भंडारी बनीं सफलता की मिसाल, सांस्कृतिक धरोहर को दे रही नया जीवन
अगर किसी में कुछ नया सीखने का जज्बा और कड़ी मेहनत करने की लगन हो, तो वह हर कठिनाई को पार कर अपनी मंजिल हासिल कर सकता है। ऐसा ही कर दिखाया है उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की अर्चना भंडारी ने।
अर्चना आज एक सफल ऐपण कलाकार के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर न सिर्फ खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि उत्तराखंड की पारंपरिक ऐपण कला को भी नई पहचान दी है।
अपनी कला के ज़रिए अर्चना न केवल आजीविका चला रही हैं, बल्कि स्थानीय महिलाओं को भी प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबी बना रही हैं। उनका यह प्रयास नारी सशक्तिकरण और सांस्कृतिक संरक्षण—दोनों का बेहतरीन उदाहरण बन गया है।

अर्चना ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि करीब पांच से छह साल पहले उन्होंने शौक के तौर पर अपने आंगन की ज़मीन (देहली) पर ऐपण डिज़ाइन बनाना शुरू किया था। शुरुआत तो सिर्फ दिलचस्पी से हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे यह शौक उनका जुनून बन गया।
जब अर्चना अपने खाली समय में घर की देहली को सुंदर ऐपण डिज़ाइनों से सजाया करती थीं, तो यह केवल एक रचनात्मक अभिव्यक्ति थी। लेकिन धीरे-धीरे उनके बनाए डिज़ाइनों की खूबसूरती पड़ोस में चर्चा का विषय बनने लगी। लोगों ने न केवल उनकी कला को सराहा, बल्कि उन्हें और भी अवसर देने लगे, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और यह शौक धीरे-धीरे उनके करियर का रूप लेता गया।
जब आस-पड़ोस के लोग अर्चना की कला से प्रभावित होकर उन्हें अपने घरों में ऐपण डिज़ाइन बनाने का आमंत्रण देने लगे, तो अर्चना को इस पारंपरिक कला में एक संभावित करियर नज़र आने लगा। यही वह मोड़ था, जब उन्होंने तय किया कि इस शौक को एक पेशेवर दिशा दी जा सकती है — न केवल अपने लिए, बल्कि समाज की अन्य महिलाओं के लिए भी।
शुरुआत में अर्चना ने छोटे स्तर पर ही काम किया, लेकिन जब उनके काम के बदले उन्हें मेहनताना मिलने लगा, तो उन्होंने इसे पेशेवर रूप से अपनाने का निर्णय लिया। अब अर्चना सोशल मीडिया के माध्यम से अपने ऐपण डिज़ाइनों को लोगों तक पहुंचा रही हैं। उनके डिज़ाइन न केवल सराहे जा रहे हैं, बल्कि उन्हें ऑनलाइन ऑर्डर भी मिल रहे हैं, जिससे वह अच्छा खासा मुनाफा कमा रही हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।
अर्चना शादीशुदा हैं और उन्हें अपने सास-ससुर का भी इस काम में पूरा सहयोग मिल रहा है। उनका कहना है कि अगर घर की बहू कुछ रचनात्मक और सकारात्मक कर रही है, तो परिवार का साथ मिलना बेहद जरूरी है। अर्चना के सास-ससुर भी मानते हैं कि ऐसे प्रयास न केवल परिवार का नाम रोशन करते हैं, बल्कि समाज में एक सकारात्मक संदेश भी देते हैं।
अर्चना के ससुर, पूर्व सूचना अधिकारी राजेन्द्र परिहार का मानना है कि अर्चना की सफलता में परिवार के सहयोग ने अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि जब घर-परिवार साथ देता है, तो कोई भी महिला अपने हुनर को पहचान दिला सकती है।
अर्चना भंडारी की कहानी सिर्फ एक सफलता की मिसाल नहीं, बल्कि एक गहरी प्रेरणा भी है। यह बताती है कि पारंपरिक कला जैसे ऐपण को अपनाकर भी युवा आत्मनिर्भर बन सकते हैं और साथ ही सांस्कृतिक विरासत को भी सहेज सकते हैं।

ऐपण जैसी लोक कला को जीवित रखने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने में अर्चना का योगदान वाकई बेहद सराहनीय है। उन्होंने न सिर्फ इस पारंपरिक कला को अपनाया, बल्कि उसे आधुनिक प्लेटफॉर्म पर पहचान भी दिलाई। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें एक सफल कलाकार बनाया है और आज वह कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं। अर्चना की कहानी यह साबित करती है कि यदि संकल्प मजबूत हो, तो लोक कला भी आत्मनिर्भरता और पहचान का माध्यम बन सकती है।